लखनऊ : पिछले कुछ चुनावों में अप्रत्याशित हार की वजह से हाशिये पर पहुंची बहुजन समाज पार्टी को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने नयी रणनीति बनाई हैं. मायावती ने बसपा के खोये जनाधार की वापसी, अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की काट और चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती लोकप्रियता को थामने के लिए कांशीराम के बामसेफ पर दांव लगाया है. मायावती एक बार फिर उत्तर प्रदेश के हर जिले में बामसेफ को एक्टिव करने जा रही हैं. गुरुवार को लखनऊ में हुई अहम बैठक में मायावती ने यह फैसला लिया.
जानकारी के मुताबिक लखनऊ की बैठक में मायावती ने ऐलान किया कि प्रदेश के हर जिले में बामसेफ का पुनर्गठन किया जाएगा. इसके लिए हर जिले में एक उपाध्यक्ष के साथ 10 उपाध्यक्षों की तैनाती की जाएगी. इतना ही नहीं विधानसभा स्तर पर एक संयोजक की तैनाती की जाएगी. दरअसल, मायावती आगामी उपचुनाव में इस प्रयोग को लागू कर परिणाम देखना चाहती हैं. अगर परिणाम सुखद रहे तो 2027 तक बामसेफ को मजबूती प्रदान की जाएगी. इतना ही नहीं कांशीराम की जन्मतिथि 8 अक्टूबर को मायावती लखनऊ में बड़ा कार्यक्रम कर इसका सार्वजनिक ऐलान भी करेंगी.
सपा के PDA की काट?
दरअसल, जानकारों का मानना है कि मायावती बामसेफ को एक्टिव कर समाजवादी पार्टी के पीडीए वाली राजनीति को कुंद करना चाहती हैं तो वहीं दलित युवाओं में चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती लोकप्रियता को भी थामना चाहती हैं. क्योंकि बसपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचाने में बामसेफ यानी बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाई फेडरेशन का बड़ा हाथ रहा. इसकी स्थापना कांशीराम ने 1971 में की थी.
क्या है बामसेफ?
बामसेफ ठीक उसी तरह से बसपा के लिए काम करता है जैसे बीजेपी के लिए आरएसएस काम करता है. इसके सदस्य दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के शिक्षित कर्मचारी व अधिकारी होते हैं. जो समाज को जाति व्यवस्था और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट करने का काम करते हैं. एक समय में बसपा की मजबूती के पीछे बामसेफ का ही हाथ था. अब एक बार फिर से मायवती बामसेफ के जरिए बसपा को संजीवनी देना चाह रही हैं.