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पांचवें चरण के चुनाव में उत्तर प्रदेश में भी कई प्रतिष्ठित चेहरों की साख दांव पर इस चरण की 14 सीटों में पांच केंद्रीय मंत्री हैं मैदान में
फाइल फोटो


सत्ता संग्राम के पांचवें चरण में बड़े चेहरों की परीक्षा होनी है। उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर नजर डालें तो इसमें केंद्र सरकार के पांच मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल हैं। उनके अलावा स्मृति इरानी, कौशल किशोर, साध्वी निरंजन ज्योति और भानु प्रताप वर्मा के भाग्य का फैसला भी 20 मई को मतदाताओं को करना है। रायबरेली पर सबकी निगाहें इसलिए लगी हैं, क्योंकि यहां से राहुल गांधी इस बार अपनी मां सोनिया गांधी की जगह चुनाव में उतरे हैं। जानिए किस सीट पर क्या बन रहे हैं समीकरण।

लखनऊ
अटल का लखनऊ, टंडन का लखनऊ या यूं कहें भाजपा का लखनऊ 20 मई को एक बार फिर से अपना सांसद चुनेगा। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तीसरी बार मैदान में हैं। कांग्रेस समर्थित रविदास मेहरोत्रा उनके सामने कितनी चुनौती पेश कर पाते हैं, यह देखने लायक होगा, लेकिन राजनाथ सिंह के सामने अपना रिकार्ड तोड़ने की चुनौती है।
बसपा ने सरवर मलिक को उतारकर मुस्लिम मतों में सेंध लगाने की जुगत की है, लेकिन अब तक के आंकड़े गवाह हैं कि राजनाथ की छवि ध्रुवीकरण से परे है। राजनाथ सिंह ने 2014 में तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी को 2,72,749 मतों से हराया था और वर्ष 2019 में उन्होंने अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए सपा की पूनम सिन्हा को 3,47,302 मतों से मात दी थी।

भारत रत्न व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी लखनऊ सीट से सांसद रहे। वर्ष 2004 में उन्होंने सपा प्रत्याशी डा. मधु गुप्ता को 2,18,375 वोट से हराकर रिकॉर्ड बनाया था। 2009 के चुनाव तक यह रिकॉर्ड कायम था। वर्ष 2014 में राजनाथ सिंह ने यह आंकड़ा पार कर अटल बिहारी वाजपेयी का रिकार्ड तोड़ दिया। अब भाजपा कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि इस बार जीत का आंकड़ा पांच लाख मतों तक पहुंचेगा।

रायबरेली

राजधानी लखनऊ से 80 किमी दूर रायबरेली की सीमा में प्रवेश करते ही यहां कांग्रेस का जोश दिखने लगता है। प्याम का पुरवा गांव से लेकर डिंडौली के बीच हाईवे पर फर्राटा भरती मोटरसाइकिलों पर कांग्रेस का झंडा लहराता दिखता है। यहां से आगे बढ़ते ही दुकानों पर भाजपा के झंडे लहराते दिखते हैं। शहर की सीमा में प्रवेश करते ही ओवरब्रिज की दीवारों पर लगे ‘रायबरेली के राहुल’ और ‘आपका बेटा और अपनी सरकार’ पोस्टर वार दिखाती है कि यहां मुकाबला जोरदार है।

सपा विधायक मनोज पांडे के भाजपा में शामिल होने की रैली में शामिल होकर लौटे हमीरमऊ के प्रताप नाई कहते हैं- ‘वोट कहां जाई, ऊ न बताएंगे।’ जगतपुर में दुकान के बाहर कुर्सी पर बैठकर बात करते हुए मिले 70 वर्षीय हरपाल खुलकर बोलते हैं। कहते हैं ‘रायबरेली के लोग जियत हैं या मरत हैं, उन्हें कोउन मतलब ना। हम तो मोदी को देखत हैं। कश्मीर का हल कैसे निकाला है, देखा है ना।’

मोदी का चेहरा भी मुद्दा

बातों से साफ होता है कि चुनाव में जहां गांधी परिवार के प्रति रिश्तों का भाव है तो मोदी का चेहरा भी बड़ा मुद्दा है। शहर में मतदाता खुलकर रुझान देता है। कलेक्ट्रेट में मिले नेताजी बिना नाम बताए कहते हैं कि ‘गांधी परिवार का रायबरेली से रिश्ता मजबूत है। अबकी बार राहुल गांधी के लिए यहां जनता चुनाव लड़ रही है। मामला एकतरफा है।’ वहीं कलेक्ट्रेट में बैठे अधिवक्ता शेखर शुक्ला कहते हैं, ‘मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। बाकी बाहर हैं। कहने को कुछ भी कहा जा रहा हो, लेकिन गांधी परिवार से रायबरेली का रिश्ता मजबूत रहा है।’

हालांकि सपा से भाजपा के हुए विधायक मनोज पांडे का फैक्टर भी असर डालेगा। वहीं गोविंद चौहान कहते हैं कि ‘भाईसाहब सीट वीआइपी है और परिवार से ही इस सीट की पहचान है। रायबरेली अबकी बार बड़ा करेगी। परिणाम कुछ भी हो, लेकिन रायबरेली ही राहुल की राजनीति का भविष्य तय करेगी।’ दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी प्रदेश सरकार के उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के स्थानीय रिश्तों और मोदी-योगी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।

हाथ को सपा का मजबूत साथ

आईएनडीआईए में शामिल सपा की रायबरेली में स्थिति मजबूत रही। पांच में से चार विधानसभा सीटें सपा ने जीती थीं, जबकि एक भाजपा के खाते में आई थी। इस चुनाव में कांग्रेस को सपा भी मजबूती दे रही है। हालांकि सपा के कद्दावर विधायक मनोज पांडे भाजपा खेमे में जा चुके हैं।

अमेठी

हार के बाद भी मैदान में डटे रहना और विजय प्राप्त करके ही लौटना... इसी मंत्र के साथ ही स्मृति इरानी अमेठी में डटी रहीं। राहुल से 2014 में मिली हार के बाद भी वह अमेठी में डटी रहीं और 2019 में इतिहास रच दिया। सलीके से अपनी बात रखने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ‘अमेठी की दीदी’ के रूप में यहां गांव-गांव, घर-घर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं।

हालांकि, इस बार उनके लिए राह इतनी आसान नहीं है। राहुल गांधी के न लड़ने पर चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा ने अपनी क्षेत्रीय पकड़ के सहारे चुनाव को रोचक बना दिया है। अभिनय से राजनीति में आई स्मृति इरानी अमेठी की राजनीति को समझती हैं। मोदी-योगी सरकार की योजनाओं के बखान के साथ ही वह अपने जुड़ाव व लगाव का अहसास आम जनता को बखूबी कराने का प्रयास करती हैं।

गांधी-नेहरू परिवार से मुकाबला

वह जानती हैं कि उनका मुकाबला कांग्रेस के किशोरी लाल से नहीं गांधी-नेहरू परिवार से है। राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा से है। इसलिए वह राहुल-प्रियंका पर ही हमलावर रहती हैं और अपनी बात से समझाने की कोशिश करती हैं कि अमेठी को वह परिवार कहती ही नहीं मानती भी हैं। अब अमेठी उन्हें अपना परिवार मानता है या नहीं, यह चुनाव परिणाम तय करेगा।

स्मृति को लेकर जो उत्साह व लगाव पिछले दो आम चुनावों में था। वही इस बार भी दिख रहा पर उनके कई अपने घात भी करते दिख रहे हैं। ऐसे में स्मृति ने मोर्चा एक बार फिर खुद ही संभाल लिया है। अमित शाह की मौजूदगी में सपा विधायक मनोज पांडेय के भाजपा में शामिल होने के बाद कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ा है। हालांकि हौसले कांग्रेस कार्यकर्ताओं के भी बुलंद हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यहां की कमान भी संभाल रखी है और स्मृति इरानी के लिए चुनौतियों का मैदान खड़ा कर दिया है।

फतेहपुर

साध्वी निरंजन ज्योति के केंद्र में राज्यमंत्री हैं और उनके लिए भी इस बार जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती है। वह फतेहपुर सीट से लगातार दो बार जीत हासिल कर चुकी हैं। उनके सामने मैदान में उतरे सपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल लड़ाई को रोचक बनाने में जुटे हैं। वहीं, बसपा के डा. मनीष सचान सपा के वोटों में सेंधमारी कर साइकिल की चाल मंद कर रहे हैं।

साध्वी निरंजन ने भाजपा की सदस्यता लेते हुए राजनीति में 2000 में कदम रखा। 2002 और 2007 में हमीरपुर विस सीट से किस्मत आजमाने उतरीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2012 में वह हमीरपुर से विधायक बनीं। फतेहपुर से 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा। दोनों बार विजयी रहीं और मोदी सरकार में राज्यमंत्री बनाई गईं। अब तीसरी बार वह चुनावी मैदान में हैं।

इस बार हैट ट्रिक जीत के साथ अपनी पुरानी बढ़त बरकरार रखने की चुनौती है। वर्ष 2019 में सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का कब्जा था। इस बार हुसेनगंज व सदर विधानसभा क्षेत्र सपा के कब्जे में है। ऐसे में उन्हें इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। साध्वी निरंजन ज्योति की सबसे बड़ी ताकत मोदी, योगी का चेहरा है।

जालौन

पांच बार सांसद बन चुके भानु प्रताप वर्मा आठवीं बार चुनाव मैदान में हैं तो बड़ा सवाल यही है कि क्या वह छठी बार संसद पहुंच पाएंगे। वार्ड सभासद से केंद्रीय राज्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा इस बार जीतते हैं तो यह उनकी हैट्रिक होगी। जालौन के कोंच कस्बे के मालवीय नगर में 15 जुलाई 1957 को जन्मे भानु प्रताप वर्मा एमए, एलएलबी हैं।

निर्विवाद छवि की वजह से भानु प्रताप को पार्टी ने एक बार फिर से इसी सीट पर प्रत्याशी बनाया है। सरकारी योजनाओं में राशन, आवास, नल से जल, एक्सप्रेसवे सहित कई काम जनता को दिखाने के लिए उनके पास हथियार के रूप में हैं। सपा से नारायण दास अहिरवार दावा ठोंक रहे हैं। वहीं, कभी एससी वोटर के दम पर इस क्षेत्र में बादशाहत कायम रखने वाली बसपा से सुरेश चंद्र गौतम भी कदमताल कर रहे हैं।


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