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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- पत्नी पर अवैध संबंध के आरोप मात्र से नहीं हो सकता बच्चों का DNA टेस्ट
फाइल फोटो


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बिना सुबूत पत्नी पर अवैध संबंध में रहने के आरोप मात्र से बच्चों के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता। अदालत के आदेश पर ही हुआ डीएनए टेस्ट मान्य है और किसी की सहमति बगैर डीएनए टेस्ट नहीं कराया जा सकता।

इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याची पिता द्वारा गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए बेटी का ब्लड सैंपल लेकर कराए डीएनए जांच की रिपोर्ट को अस्वीकार्य माना। साथ ही नए सिरे से डीएनए टेस्ट कराने की मांग अस्वीकार कर दी। हाई कोर्ट ने ग्राम अदालत द्वारा पत्नी और दो बच्चों के हक में पारित गुजारा भत्ते के बकाये का भुगतान एक महीने में करने, जुलाई से नियमित गुजारा भत्ता देने का निर्देश याची को दिया है। निचली अदालत के आदेश की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।

कोर्ट ने क्‍या कहा
 
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने डॉ. इरफाक उर्फ मोहम्मद इरफाक हुसैन की याचिका व पुनरीक्षण अर्जी पर दिया है। कोर्ट ने कहा, पति-पत्नी शादी के चार साल तक साथ रहे। पति ने अर्जी में कहीं नहीं कहा कि इस दौरान उसके अपनी पत्नी के साथ कभी शारीरिक संबंध नहीं हुए। वैध शादी के दौरान यदि बच्चे पैदा होते हैं तो कानूनी उपधारणा यही होगी कि बच्चे उन्हीं मां-बाप के हैं। यदि कोई शक करता है तो उसे साबित करना होगा कि वह उसकी संतान नहीं है।

2013 में हुई थी शादी  

याची की शादी विपक्षी के साथ 12 नवंबर 2013 को हुई थी। दहेज में पांच लाख नकद व मोटरसाइकिल मांगने को लेकर विवाद हुआ और पत्नी दोनों बच्चों को लेकर मायके चली आई। उसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में गुजारा भत्ते के लिए ग्राम अदालत कासगंज में अर्जी दी। सुनवाई के दौरान डॉक्टर याची ने बच्चियों के खून का सैंपल लेकर हैदराबाद लैब से डीएनए टेस्ट रिपोर्ट मंगा ली और अदालत में पेश कर विपक्षी संख्या तीन अपनी बेटी को नाजायज औलाद करार दिया।

कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने का द‍िया आदेश    

अदालत ने पत्नी से आपत्ति मांगी और गुजारा भत्ता देने का आदेश दे दिया। इसके खिलाफ दाखिल अपील अपर जिला न्यायाधीश ने खारिज कर दी। इसके बाद याची ने हाई कोर्ट में याचिका व पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की। कोर्ट ने कहा, डीएनए जांच याची ने गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए कराई। कोर्ट के आदेश से जांच नहीं की गई। ऐसी रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है। केवल पत्नी पर आरोप लगाकर बच्चों के पितृत्व से इनकार नहीं किया जा सकता। बिना ठोस सुबूत या आधार के डीएनए जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।


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