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देश भर में स्वर्णिम इतिहास रचने वाली डक बैक कंपनी के अस्तित्व पर संकट
जूते


कभी आपने अपने बच्चे का स्कूल बैग देखा है, या फिर रेनकोट या बीमार पड़ने पर हॉट वॉटर बलून तो होगा ही मगर नहीं देखी होगी उसे बनाने वाली कंपनी। डक बैक (इंडिया) लिमिटेड को लोग भूल रहे हैं और कंपनी भी अपना स्वर्णिम इतिहास भूल रही है।

देश की जानी-मानी कंपनी जो किसी जमाने में माइंस बूट, सेफ्टी बूट, रैन कोट, एयर पिलो, शिकारी बूट, हंटर बूट, हवाई चप्पल, हॉस्पिटल सीट के साथ-साथ सीसीएल कंपनी के लिए जूता, बिहार पुलिस का जूता, मिजोरम पुलिस के लिए जूता बनाती थी का रांची से गहरा नाता रहा है।

अब डक बैक बंद होने के कगार पर है। दुनिया भर में जब इस तरह के उत्पादों की मांग बढ़ रही है तो भी कंपनी के मालिकान को इसे धीरे-धीरे बंद करने के बारे में सोचना पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या रांची की शान जिसे रांची वाले भी लगभग भूल चुके हैं, एक दिन बंद हो जाएगी?

रांची की शान एचईसी हीं नहीं...

रांची की शान एचईसी ही नहीं डक बैक भी थी, जो बदहाली के कगार पर पहुंच चुकी है। डक बैक (इंडिया) लिमिटेड अब सिर्फ गम बूट का निर्माण कर रही है। कंपनी के लगातार घाटे में चलने के कारण डक बैक (इंडिया) लिमिटेड बंद के कगार पर पहुंच चुकी है।

कंपनी के स्थापना काल में जूता बनाने की 30 मशीन और कैलेंडर मशीन चार थीं, जिसमें 150 से ज्यादा कर्मी यहां पर काम करते थे, पर वर्तमान में एक मशीन में 48 कर्मी यहां काम कर रहे हैं, जिनकी नौकरी पर आफत बनी हुई है।

क बैक की कहां से शुरू हुई कहानी?

बता दें कि बंगाल वाटर प्रूफ लिमिटेड नामक कंपनी कोलकाता में थी, जिसकी सब्सिडियरी कंपनी के नाम पर बिहार रबर कंपनी लिमिटेड के नाम से वर्ष 1970 में रांची में कंपनी शुरू हुई। इसके बाद इस कंपनी को पवन ध्रुत ने टेक ओवर किया।

कंपनी के नुकसान में चलने के बाद पवन ध्रुत ने वर्ष 2018 में ओम प्रकाश सक्सेना को इसे बेच दिया। इसके बाद कंपनी को डक बैक के नाम से ओम प्रकाश सक्सेना चला रहे हैं। वर्ष 2020 में सीसीएल से डक बैक कंपनी को लास्ट ऑर्डर मिला, जिसके बाद कंपनी ने चप्पल बनाने काम शुरू किया, पर उसका मार्केट नहीं मिलने के कारण उसे भी बंद किया।

इसके बाद कंपनी ने यहां पर हॉस्पिटल सीट बनाना शुरू किया, पर उसकी भी क्वालिटी बेहतर नहीं निकली। इसका नतीजा यह हुआ कि कंपनी को हॉस्पिटल सीट में लाखों रुपये खर्च के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। फिर एयर पिलो बनाना शुरू किया, पर कोविड के बाद उसकी मांग भी खत्म हो गई। फिलहाल डक बैक कंपनी गम बूट बनाने का काम कर रही है।

रांची में डक बैक फैक्ट्री का इतिहास

रांची में डक बैक फैक्ट्री की स्थापना 1970 के दशक में हुई थी। इस फैक्ट्री का मुख्य उद्देश्य गुणवत्ता वाले रबर उत्पादों का निर्माण करना था। डक बैक नामक यह फैक्ट्री अपने समय में देश के सबसे प्रतिष्ठित रबर उत्पादक इकाइयों में एक थी।

रांची में डक बैक फैक्ट्री का प्रोडक्शन

डक बैक फैक्ट्री में विभिन्न प्रकार के रबर उत्पादों का उत्पादन होता था। इनमें मुख्य रूप से माइंस बूट, सेफ्टी बूट, रैन कोट, एयर पिलो, शिकारी बूट, हंटर बूट, हवाई चप्पल, हॉस्पिटल सीट, जलरोधक जूता, बरसाती कपड़ों, रबर शीट्स, और औद्योगिक उपयोग के विभिन्न रबर उत्पादों का निर्माण शामिल था। इसके अलावा, फैक्ट्री ने समय के साथ अन्य उपयोगी रबर उत्पादों का भी उत्पादन शुरू की थी, पर फिलवक्त सभी उत्पाद बंद पड़ा है सिर्फ गम बूट का निर्माण हो रहा है।

जी हां, रांची में डक बैक फैक्ट्री ने भारतीय सेना के लिए बारिश से बचाने वाली वर्दियों का निर्माण नहीं किया। बल्कि, इसकी कोलकाता वाली इकाई में भारतीय सेना के लिए बारिश से बचाव के लिए वर्दियों के निर्माण की बात सामने आई है। ये वर्दियां जलरोधक थीं और सेना के जवानों को कठिन परिस्थितियों में भी सुरक्षित और सूखा रखने में सक्षम थीं।

टर्नओवर और रोजगार

डक बैक फैक्ट्री के शुरुआती समय में कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपये में था। इस फैक्ट्री में सैंकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ था, जो रांची और आसपास के क्षेत्र के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण था।

परंतु कंपनी के बंद होने की स्थिति में एक-एक कर कर्मियों का स्थानांतरण रांची से कोलकाता कर दिया जा रहा है। फिलहाल कंपनी में 48 कर्मी कार्यरत हैं, जिनमें से 31 का स्थानांतरण कोलकाता स्थित कंपनी में कर दिया गया है।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में रांची में डक बैक फैक्ट्री की स्थिति गंभीर है। आर्थिक कठिनाइयों और प्रोडक्शन की कमी के कारण फैक्ट्री लगभग बंद होने की कगार पर है। फैक्ट्री के कई कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं और बचे हुए कर्मचारियों का भविष्य भी अनिश्चितता में है।

स्थानीय प्रशासन और सरकार से मदद की उम्मीद की जा रही है, ताकि इस ऐतिहासिक फैक्ट्री को पुनर्जीवित किया जा सके और रोजगार के अवसर फिर से उपलब्ध हो सकें।
क्या कहते हैं कंपनी के स्थानीय प्रबंधक
डक बैक (इंडिया) लिमिटेड के स्थानीय प्रबंधक गौतम कुमार घोष का कहना है कि कंपनी कर्मी अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए बेवजह की तूल दे रहे हैं। यहां पर जिन मशीन में काम नहीं हो रहा उनमें से दो मशीन को ट्रक में लोड कर 16 मई को बाहर भेजा जा रहा था, जिसे हड़ताली कर्मचारियों ने जाने से रोक दिया।

प्रशासन से भी सहयोग मांगा, पर कर्मचारियों ने उनकी भी नहीं सुनी और फिर से उन मशीनों को ट्रक से उतारकर खुले आसमान के नीचे रख दिया है। उन्होंने कहा कि कंपनी के चेयरमैन का साफ तौर से कहना है कि जिन कर्मियों का यहां से कोलकाता यूनिट में स्थानांतरण किया गया है, उनके रहने और खाने का भी प्रबंध है, पर ये कर्मी काम से पीछे हटकर राजनीति कर रहे हैं।

क्या कहती हैं कंपनी की एचआर हेड

डक बैक (इंडिया) लिमिटेड की एचआर हेड ऊषा देवी का कहना है कि कंपनी के चेयरमैन ओम प्रकाश सक्सेना लगातार पांच वर्षों से हरेक माह 10-12 लाख रुपये का नुकसान होने के बावजूद भविष्य की सोच को देखते हुए कंपनी चलाते गए।

इसके लिए पिछले वर्ष वर्करों के साथ बैठक हुई, जिसमें फैक्ट्री को छोटा करने पर सहमति बनी, पर अब वहीं वर्कर अपनी बातों से मुकर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले माह भी कंपनी को 12.50 लाख रुपये का नुकसान पहुंचा है।

एचआर हेड का कहना है कि कंपनी का स्पष्ट निर्देश है कि जिनका स्थानांतरण कोलकाता हो गया है, वे पहले ज्वाइन करें, फिर आगे की कोई बात करें। या फिर जो ज्वाइन नहीं करना चाहते वे नियमानुसार कंपनी से अपना हिसाब कर लें।


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