96 सीटों पर 2018 की तुलना में कम हुई वोटिंग
फाइल फोटो


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए शुक्रवार को हुए मतदान की तस्वीर धीरे-धीरे स्पष्ट हो रही है। कहीं कम तो कहीं अधिक मतदान हुआ है। इस ट्रेंड ने नेताओं की धड़कनें बढ़ा दी हैं। राज्य के औसत मतदान में वृद्धि को देखें तो यह भी अपेक्षाकृत कम रहा है। भाजपा 51 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त करने के लिए मतदान बढ़ाने पर जोर दे रही थी तो कांग्रेस भी बूथ, सेक्टर और मंडलम इकाइयों के माध्यम से इसी प्रयास में थी कि मतदान बढ़े पर ऐसा नहीं हुआ।

2018 के मुकाबले 31 सीटों पर घटा मतदान

आदिवासियों यानी एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 पर मतदान वर्ष 2018 के मुकाबले घटा है तो एक सीट पर यथास्थिति रही है। 15 सीटों पर अधिक मतदान हुआ। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के अनुसार राज्य के औसत मतदान में वृद्धि को देखा जाए तो यह पिछले तीन चुनावों की तुलना में कम है। परिसीमन के बाद वर्ष 2008 में 69.52 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया था।

भाजपा ने घर-घर जाकर अभियान चलाया

वर्ष 2013 के चुनाव में 3.17 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 72.69 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। वर्ष 2018 में यह 2.94 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 75.63 प्रतिशत पर पहुंच गया था, लेकिन इस वर्ष मात्र 0.59 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि, भाजपा और कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस बार मतदान साढ़े तीन प्रतिशत से अधिक बढ़ेगा। भाजपा ने मतदान प्रतिशत में वृद्धि के लिए बूथ सशक्तीकरण अभियान चलाकर घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क किया।

मतदान के दिन मतदाताओं को घर से निकालने के लिए बड़ी संख्या में कार्यकर्ता लगाए। कांग्रेस ने भी बूथ, सेक्टर और मंडलम समितियां बनाईं ताकि अधिक से अधिक मतदान हो सके। पहली बार बूथ लेवल एजेंट लगभग सभी मतदान केंद्रों पर नियुक्त किए गए। इन सभी प्रयासों के बाद भी 96 सीटों पर मतदान पिछले चुनाव के मुकाबले कम रहा है। प्रयास काम नहीं आए यानी जनता के मन में क्या है, यह समझ पाना और मुश्किल हो गया।



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