भाजपा और कांग्रेस सहित 106 राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतरे
फाइल फोटो


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस सहित 106 राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतरे हैं। इसके साथ ही निर्दलीयों ने भी भाग्य आजमाया है। तीन दिसंबर को परिणाम आने के साथ ही इन सभी के भविष्य की दिशा तय होगी, पर कुछ के लिए इस चुनाव के खास मायने रहेंगे।

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है। इस चुनाव में अपना खाता खोलने के लिए सिंगरौली की महापौर और पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष रानी अग्रवाल को भी मैदान में उतारा। पार्टी यह सीट जीतने की उम्मीद कर रही है। आप ने प्रदेश में इस चुनाव में 66 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे।

भीम आर्मी ने उतारे हैं 86 सीटों पर प्रत्याशी

वहीं, इस बार बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के बीच गठबंधन से दोनों दलों को लाभ-हानि इनकी आगे की दिशा तय करेगी। पहली बार भीम आर्मी यानी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने भी 86 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। आजाद समाज पार्टी (एएसपी) की पैठ भी अनुसूचित जाति (अजा) मतदाताओं के बीच है।

हालांकि, इस चुनाव में पार्टी ने ओबीसी मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश की। पहले यह पार्टी ओबीसी महासभा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी, पर बाद में ‘आइएनडीआइए’ बनने के बाद यह एक नहीं हो सकीं। बसपा के भी परंपरागत वोट अजा वर्ग में रहे हैं। ऐसे में, एएसपी को जितना अधिक मत मिलेंगे, बसपा को उतना नुकसान होने की आशंका है।

बसपा को पांच प्रतिशत से अधिक मत मिलते रहे हैं

बता दें कि विधानसभा चुनावों में बसपा को पांच प्रतिशत से अधिक मत मिलते रहे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली थी। बसपा और जीजीपी के गठबंधन के बाद दोनों में किसे-कहां लाभ होता है, इसी आधार पर दोनों की आगे की दिशा तय होगी।

गठबंधन के अंतर्गत बसपा को 178 और 52 सीटों पर जीजीपी को चुनाव लड़ना था। जीजीपी को तीन सीटों पर उम्मीदवार नहीं मिलने के कारण बसपा ने यहां अपने प्रत्याशी उतारे थे। तीन दिसंबर को पांचों राज्यों के परिणाम एक साथ घोषित होंगे। इसके बाद स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी। उसके बाद ही लोकसभा के लिए रणनीति बनेगी।


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