मैं इसे इस तरह देखता हूं कि मुझे वह मंच मिल गया जिसकी मुझे जरूरत थी- रमेश
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आइपीएल की मेगा नीलामी में खिलाड़ियों पर करोड़ों की बोली को देखते हुए 20 लाख का अनुबंध भले ही बहुत बड़ी बात नहीं लगे, लेकिन टेनिस गेंद के क्रिकेट में नाम कमाने वाले रमेश कुमार के लिए यह राशि काफी मायने रखती है। रमेश ने इस राशि के साथ सुनिश्चित किया कि उनके पिता को अब आजीविका कमाने के लिए मोची का काम नहीं करना होगा और ना ही उनकी मां को पंजाब के फाजिल्का जिले में चूड़ियां बेचने के लिए एक गांव से दूसरे गांव में घूमना पड़ेगा।

टेनिस गेंद के क्रिकेट में नारायण जलालाबाद के नाम से मशहूर रमेश गेंद और बल्ले से अपने खेल से पहले ही यूट्यूब पर स्टार हैं। पिछले सप्ताहांत नीलामी में कोलकाता नाइटराइडर्स के साथ अनुबंध के बाद उनकी कहानी अधिक लोगों के पास पहुंची है। रमेश ने इससे पहले भी कई बार अपने उम्रदराज माता-पिता को काम बंद करने को कहा, लेकिन उन्होंने कभी उनकी बात नहीं सुनी। आइपीएल करार मिलने के बाद वे मान गए कि उनके बेटे का खेल में भविष्य है और उन्हें गली-गली भटकने की जरूरत नहीं है। स्थानीय टूर्नामेंट में एक बार 10 गेंदों में अर्धशतक जड़ने वाले रमेश ने कहा, 'वे अब काम नहीं करने के लिए राजी हो गए। मैं कभी नहीं चाहता था कि वे ये काम करें, लेकिन मजबूरी में यह काम करना पड़ा।

रमेश आइपीएल से मिलने वाले पैसों का इस्तेमाल अपने छोटे भाइयों की शिक्षा के लिए भी करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'अब तक जीवन नहीं बदला है। जीवन तब बदलेगा जब मैं आइपीएल में प्रदर्शन करूंगा। मैं इसे इस तरह देखता हूं कि मुझे वह मंच मिल गया जिसकी मुझे जरूरत थी।' जलालाबाद के 23 वर्षीय रमेश ने सात साल तक देश के टेनिस गेंद टूर्नामेंट में अपना जौहर दिखाया, लेकिन पिछले साल ही उन्होंने 'लैदर गेंद' से खेलना शुरू किया। रमेश ने पंजाब क्रिकेट संघ के जिला स्तर के टूर्नामेंट में प्रभावित किया जिसके बाद उन्हें रणजी ट्राफी शिविर के लिए बुलाया गया।

रमेश अपने करियर का श्रेय पंजाब के बल्लेबाज और आइपीएल में नियमित रूप से खेलने वाले गुरकीरत मान को देते हैं जिन्होंने उन्हें मुंबई में नाइटराइडर्स के ट्रायल में पहुंचाने में मदद की। नाइटराइडर्स के कोच और पूर्व भारतीय आलराउंडर अभिषेक नायर भी रमेश से प्रभावित हुए जिसके बाद टीम ने उन्हें उनके आधार मूल्य पर खरीदा। रमेश ने बताया कि कैसे वह टेनिस गेंद के टूर्नामेंट में दिन के 500 से 1000 रुपये कमाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा करते थे और इसी के कारण उन्हें पहली बार विमान में बैठने का मौका भी मिला।

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